आचार्य श्री शांति सागर जी ने धर्म का पंथ नही पथ दिखाया आचार्य श्री वर्धमान सागर जी
राजस्थान धड़कन न्यूज़ गजेन्द्र लखारा बांसवाड़ा घाटोल संघ के आगमन पर आप नारे लगा रहे हैं घाटोल में समवशरण आया है समवशरण में आने के बाद भगवान की वाणी देशना को निराकुल होकर श्रवण किया जाता है 30 वर्षों के पूर्व घाटोल आए थे तीन दशक पूर्व जिनालय के दर्शन किए अब घाटोल वासियों ने जिनालय को समवशरण का रूप दिया है वीतरागी भगवान के दर्शन से आह्लाद मन में प्रसन्नता होती है प्राचीनतम मंदिरों के दर्शन से विशेष खुशी होती है यहां पर भट्टारक श्री यश कीर्ति जी एवं उनके पूर्व वृति भट्टारक द्वाराजिनेन्द्र भगवान की प्रतिमाएं स्थापित की उस समय दिगंबर साधु उत्तर भारत में नहीं आते थे मंदिरों क्षेत्रों के विकास के कारण उत्तर भारत में भी भट्टारक परंपरा कायम थी पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने यह धर्म देशना घाटोल नगर प्रवेश के समय आयोजित धर्म सभा में प्रकट की ब्रह्मचारी गज्जू भैया राजेश पंचोलिया अनुसार आचार्य श्री ने बताया कि भारत में सूर्य पूर्व दिशा से उदित होकर पश्चिम में अस्त होता है आज से सैकड़ो साल पहले दक्षिण भारत के कर्नाटक प्रांत में एक सूर्य का उदय दक्षिण में आचार्य श्री शांति सागर जी का हुआ सूर्य अंधकार का नाश करता हैं प्रकाश का उदय करता हैं उसी प्रकार आचार्य श्री ऐसे सूर्य चक्रवर्ती थे जिन्होंने अज्ञान मिथ्यातव रूपी अंधकार को ज्ञान रूपी प्रकाश से दूर किया जिन्होंने संपूर्ण देश में धर्म का प्रवर्तन किया धर्म की ध्वजा लहराई उत्तर भारत में भी उस सूर्य की किरण आई उत्तर भारत में पहले चातुर्मास का सौभाग्य कटनी को प्राप्त हुआ आचार्य श्री ने प्रसंग बताया कि कटनी में काफी विद्वान थेऔर उनका यह प्रयास था कि कटनी में आचार्य शांति सागर जी का चातुर्मास नहीं हो इसके लिए उन्होंने अनेक प्रकार की शंका प्रश्न उत्पन्न किए जिनका समाधान संघपति द्वारा किया गया संघपति को बताया गया कि कटनी में हर तीसरे वर्ष में फ्लैग की महामारी फैलती है और इस वर्ष भी तीसरा वर्ष होने से फ्लैग की बीमारी फैलेगी जिससे आचार्य शांति सागर जी का चातुर्मास कटनी में नहीं कराया जावे संघपति ने बहुत सहजता विश्वास से उत्तर दिया कि जहां दिगंबर गुरु के चरण पढ़ते हैं चातुर्मास होते हैं वहां पर फ्लैग या भविष्य में कभी भी इस नगर में फ्लैग की बीमारी नहीं आएगी इतना मुझे आचार्य श्री पर श्रद्धा भक्ति और विश्वास है सचमुच निर्विघ्न कटनी चातुर्मास प्रभावना पूर्वक संपन्न हुआ और नगर संकट मुक्त हो गया यहां के मंदिर में एक स्लोगन नारा देखा धर्म पंथ नहीं पथ सिखाता है आचार्य शांति सागर जी ने भी धर्म का पथ दिखाया जिनालयों को शासन के नियमों से आए संकट से मुक्त कराया धर्म मंगलमय है धर्म को धारण करने वाले का मंगल होता है इसीलिए मंगल के प्रतिक कलश यात्रा निकाली जाती है मंगल कलश घटयात्रा से पापों का प्रक्षालन होता है लबालब भरे हुए कलश से भूमि की शुद्धि होती है और मंगल ही मंगल होता है आचार्य श्री ने चिंता व्यक्त कर बताया कि आजकल घटयात्रा औपचारिक रह गई है क्योंकि कलश में जल नाम मात्र का होता है जल भूमि पर गिरने से मंगल होता हैं गुरु मंगलकारी होते हैं गुरु के आगमन से मंगल ही मंगल होता है आचार्य श्री ने अहिंसा सत्य अपरिग्रह का महत्व प्रतिपादित कर बताया कि अहिंसा का महत्व समझकर संयम धारण करना चाहिए आचार्य शांति सागर जी ने भी संयम को धारण किया जिस प्रकार संकट के समय कछुआ शरीर को संकुचित कर व्रज के समान कठोर बना लेता है उसी प्रकार आचार्य शांति सागर जी ने व्रत संयम नियम के माध्यम से शरीर को संकुचित कर शरीर की आत्मा को कर्मो से सुरक्षित किया 22 प्रकार के अभक्ष्य की चर्चा की जो कि जैन धर्म के अनुकूल नहीं है आचार्य श्री ने विकसित जिनालय में दर्शन पूजन भक्ति से जीवन को मंगलमय बनाने की कामना की आचार्य श्री के शिष्य मुनि श्री हितेंद्र सागर जी ने अपने प्रवचन में आचार्य शांति सागर जी महाराज का गुणानुवाद कर बताया कि आचार्य शांति सागर जी ने जैन धर्म संस्कृति और समाज को संस्कार दिए उन्होंने साधु परंपरा को जीवित किया आपने उत्तर भारत का भ्रमण कर समाज को धर्म के प्रति स्थिर किया उन्होंने पर से ध्यान हटाकर स्व का चिंतन किया उन्होंने कभी व्रत में लांछन नहीं लगाया आचार्य श्री का आज खमेरा से मंगल प्रवेश घाटोल नगर में हुआ है घाटोल नगर से बिहार की दिशा बांसवाड़ा की ओर है