दया सबसे बड़ा धर्म हैं दया से पुण्य का अर्जन होता हैं गुरु परम उपकारी होते हैं आचार्य श्री वर्धमान सागर जी
राजस्थान धड़कन न्यूज़ गजेन्द्र लखारा बांसवाड़ा आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज की परंपरा के पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधी आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज अपने विशाल संघ 48 साधु सहित बाहुबली कॉलोनी बांसवाड़ा में विराजित हैं आज की धर्म सभा में आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने बताया कि विगत अनेकों सैकडो वर्षों में महानतम आचार्य हुए हैं जिन्होंने तीर्थंकर भगवान की दिव्य ध्वनि को श्रवण कर स्मरण शक्ति से शास्त्रों में लिपिबद्ध किया जो आज जिनवाणी के रूप में सुनने पढ़ने देखने के लिए उपलब्ध है उस समय अनेक आचार्यों में पूज्य पाद स्वामी भी हुए जो पैर में गगन गामी लेप लगाकर गमन करते थे उनके चरणों के स्पर्श से लोहा भी स्वर्ण हो जाता था। पूज्यपद स्वामी का समाधि मरण कनकगिरी कर्नाटक में हुआ है उमा स्वामी आचार्य ने तत्वार्थ सूत्र ग्रंथ का सृजन किया जो की गागर में सागर है पूर्वाचार्य मन वचन काय की शुद्धि से ग्रन्थों का सृजन करते थे हमारा सौभाग्य है कि हमें जिनवाणी श्रवण करने का अवसर संत समागम से मिलता है गुरु शब्द के विश्लेषण में बताया कि गुरु गरिमावान संयम तप मर्यादावान उदार हृदय के जिनवाणी के रहस्यों का रसपान कराते हैं राजेश पंचोलिया महेन्द्र वोरा महेंद्र कवलिया अनुसार आचार्य श्री के प्रवचन के पूर्व मुनि श्री पुण्य सागर जी ने अपने उपदेश में बताया कि पूर्वाचार्य ने इष्टोपदेश ग्रंथ की रचना की है अर्थात ऐसा उपदेश जो हमारे लिए इष्ट हितकारी हो लौकिक सांसारिक प्राणी के लिए धन परिवार व्यापार संपदा होती है किंतु यह सब संपदा नश्वर है वास्तविक इष्ट परमात्मा और पंच परमेष्ठी है इन्हें प्राप्त करने का उपदेश संत समागम से मिलता है इससे सुख होता है और मोक्ष सुख ही इष्ट है और इसे प्राप्त करने के लिए आत्मा में भक्ति से ऊर्जा से आत्म शक्ति होती है इससे मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं साधु परमेष्टि उपदेश देते हैं उस उपदेश का अभ्यास अर्थात स्वाध्याय मनन चिंतन करना जरूरी है क्योंकि उपदेश तो सभी सुनते हैं श्रवण करते हैं किंतु हृदय में कोई नहीं उतारता है साधु परमेष्ठी ही उपदेशों को हृदय में उतारते हैं सिंह और हाथी पर्याय में भी दो जीवों ने अपने परिणामों को शुद्ध रखकर तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया इसलिए स्व और पर का भेद विज्ञान जरूरी है तभी मोक्ष सुख का मार्ग मिलेगा गुरु अज्ञान रूपी अंधकार को अपने ज्ञान रूपी प्रकाश से दूर करते हैं इससे शिष्य की नैया पार हो जाती है गुरु सबसे बड़ा होता है जन्म होने पर माता-पिता गुरु, शिक्षा के समय शिक्षक और आध्यात्मिक गुरु साधु परमेश्वरी होते हैं गुरु करुणा से युक्त होते हैं यह आत्मा का स्वभाव है जो नष्ट नहीं होता है संसार के प्राणियों के कल्याण की भावना आचार्य शांति सागर जी महाराज में भी थी मुनि श्री ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार सबसे उत्तम खेती होती हैं क्योंकि खेती करने में मन वचन काय के परिणाम सरल होते हैं पाप का संचय नहीं होता है पुलिस ने रहस्य के बात बताई कि जैन समाज समृद्ध क्यों है जैन समाज दान और त्याग करता है इसलिए वह समृद्ध है वह उठकर भगवान के चरणों में द्रव्य समर्पण कर दर्शन अभिषेक पूजन करते हैं जैन ने कभी हाथ नहीं फैलाएं
दया सबसे बड़ा धर्म हैं दया से पुण्य का अर्जन होता हैं