गुरुदेव अपूर्व सागर जी एवम अर्पित सागर जी का शांतिविधान हुआ संपन्न
राजस्थान धड़कन न्यूज योगेश जोशी सलूंबर सराडी 1008 श्री चन्द्र प्रभ दिगम्बर जैन मन्दिर में पंचम पट्टाधिश वात्सल्य वारिधि आचार्य वर्धमान सागरजी महाराज के सुयोग्य तपस्वी युगल मुनी 108 श्री अपुर्व सागरजी एवं मुनि 108 श्रीअर्पित सागर जी,महाराज क्षुल्लक 105श्री महोदय सागरजी महाराज एवं ब्रह्मचारी नमन भैया एवं सनावद निवासी क्षुल्लक महाराज जी के पीताजी ससघं सानिध्य में प्रतिष्ठाचार्य पण्डित कमलेश सलुम्बर के मन्त्रोचार से शान्ति विधान सम्पन्न करवाया गया,शान्ति विधान में पुजा करने लिये सौधर्म, कुबेर,यज्ञनायक, ईसान आदि ईन्द्र बनकर पुजा करने की बढ चढ कर बोलियां लगाकर पात्र बने शान्ति विधान में मंडप पर 130 श्री फलों युक्त अर्ध्य समर्पित किये गये, शान्ति विधान की पुर्णाहुती से पुर्व मुनी महाराज अर्पित सागर जी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि मन्दिर में आये बीना, गुरूओं की सेवा बीना और शास्त्र श्रवण किये बीना धर्म क्या है, धर्म कैसे करना, बीना धर्म को जाने पशु-पक्षियों और ईन्सानों में क्या फर्क है, खाना, पीना,सोना, सुखी दुखी होना ,भोग ऊपभोग रती सभी क्रीया एक ही तरह है, सिर्फ और सिर्फ धर्म ही है जो ईन्सान को पशुओ से अलग करता है, सभी धर्म में लगे धर्म को समज कर आचरण में उतारें, धर्म समजने के लिये गुरूओं का सन्त समागम के बीना कौन समझाएगा, जब भी अवसर मीले, देव शास्त्र, और गुरू की सेवा से नहीं चुके यही तीन रत्न (रत्नत्रय) संसार सागर से पार करने वाले है। पश्चात, युगल मुनिराज जी का पाद प्रक्षालन, (पावों को जल से पखारा)गया, युगल मुनिराज जी को शास्त्र भेंट किये गये, जिनेन्द्र प्रभु की आरती के बाद युगल मुनिराज की आरती की गई,आस पास के गांवो गीगंला, खरका,औरवाडिया, ऊथरदा,मीथोडी आदी कई गावों से श्रावक श्रावीकाओं ने आकर धर्म लाभ लिया एवं गुरू चरणों की धुली माथे से लगाई,मचं संचालन जीतेन्द्र जोलावत ने किया शान्ति विधान के उपलक्ष्य में स्वामी वात्सल्य भोज का आयोजन भी किया 3 जुलाई तक युगल मुनी सघं सहीत सराडी में ही रूककर धर्म प्रभावना करने की संभावना है ज्ञातव्य है कि परम ज्ञानी युगल मुनिराज का चातुर्मास सलुम्बर में होना निश्चित हो चुका है