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December 12, 2024
दैनिक समाचार

मैग्नस हॉस्पिटल पर लगे डिलीवरी के नाम पर लाखो रुपए हड़पने का आरोप चिकित्सक की लापरवाही से बच्चे की गई आंखो की रोशनी

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राजस्थान धड़कन दिनेश ओदिच्य उदयपुर में मेगनस होसपिटल मे चार घंटे के अंतराल में हुई एक ही जांच की दो रिपोर्ट्स में विरोधाभास बाल चिकित्सक डॉक्टर मनोज अग्रवाल की लापरवाही ने छीन ली नवजात के आँखों की रौशनी, गलती छुपाने के लिए डिस्चार्ज समरी तक बदली उदयपुर में एक शिशु रोग विशेषज्ञ की लापरवाही से एक नवजात हमेशा के लिए अंधा हो गया परिजनों ने हॉस्पिटल प्रबंधन और चिकित्सकों पर लापरवाही के गंभीर आरोप लगाते हुए कानूनी कार्रवाई की मांग की है यह पूरा मामला उदयपुर के मैग्नस अस्पताल का है जहां एक प्रिमेच्योर बेबी के जन्म के बाद शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर मनोज अग्रवाल ने उसका आर.ओ.पी (R.O.P) टेस्ट नहीं लिखा और डिस्चार्ज समरी परिजनों को देते हुए बच्चे को स्वस्थ्य बताकर उन्हें सौंप दिया लेकिन अब 10 माह का बच्चा पूर्ण रूप से अंधा हो चुका है जिसका हैदराबाद में इलाज जारी है पीड़ित योगेश जोशी ने बताया कि उसकी पत्नी अपूर्वा के गर्भवती होने के बाद वे गायनिक डॉक्टर शिल्पा गोयल से इलाज लेने गए थे। जहां 7 महीने तक उनका रूटीन चेकअप और जांचे चलती रही, जो सभी नॉर्मल थी 7वें महीने में डॉक्टर गोयल ने सोनोग्राफी करवाई और उसमें AMNIOTIC FLUID (एमनियोटिक फ्लूड) कम होने की बात कहते हुए डिलीवरी करवाने का दबाव बनाया जांच रिपोर्ट में एमनियोटिक फ्लूड की वैल्यू 3.9 थी, जो नॉर्मल 8 से 9 के बीच होनी चाहिए ऐसे में परिजनों ने उसी दिन वही सोनोग्राफी अर्थ डायग्नोस्टिक पर करवाई जिसमे उसकी वैल्यू 8.2 आई, जो नॉर्मल थी ये बात जैसे ही परिजनों ने डॉक्टर शिल्पा गोयल को बताई तो उन्होंने मैग्नस अस्पताल में फिर से सोनोग्राफी की, जिसमे वही वैल्यू 5.8 आ गई इससे साफ है कि एक ही अस्पताल में चार घंटे के अंतराल में की हुई दो सोनोग्राफी की रिपोर्ट में ही अंतर है जबकि अर्थ पर हुई जांच में रिपोर्ट नॉर्मल आई है इसके बाद भी डॉक्टर गोयल ने उन्हें अगले ही दिन भर्ती होकर डिलीवरी करवाने का दबाव बनाया गर्भवती महिला और उसके परिजन काफी डर गए और डॉक्टर की सलाह मानते हुए डिलीवरी करवा दी डिलीवरी के बाद जन्मे प्रिमेच्योर बेबी को मैग्नस अस्पताल के एनआईसीयू में करीब 21 दिन भर्ती रखा और उसके बाद डिस्चार्ज किया गया ऐसे में उस अस्पताल में एक डिलवरी का बिल करीब 4 से 5 लाख तक बन गया, जो पीड़ित की ओर से चुका दिए गए इसके बाद शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर मनोज अग्रवाल की निगरानी में बच्चे का इलाज चलता रहा परिजनों ने बताया कि डॉक्टर मनोज अग्रवाल ने लापरवाही बरतते हुए बच्चे का R.O.P टेस्ट नहीं करवाया, जिस कारण नवजात ने हमेशा के लिए अपनी आंखों की रोशनी खो दी है जबकि हर प्रिमेच्योर बेबी का R.O.P टेस्ट आवश्यक होता है जब नवजात 3 माह का हुआ तो उसकी आंखें एक जगह स्थिर नहीं रहकर 360° रोटेट हो रही थी इस पर परिजनों ने फिर से डॉक्टर को बताया तो उन्होंने सब ठीक है कहकर भगा दिया लेकिन 6 माह तक भी नवजात आंखों को स्थिर नही कर पा रहा था ऐसे में परिजनों ने फिर से डॉक्टर अग्रवाल को दिखाया, इसपर उन्होंने मधुबन स्थित एएसजी अस्पताल में दिखाने को बोला एएसजी अस्पताल में डॉक्टर रोहित योगी ने नवजात को देखते ही दिल्ली एम्स में सर्जरी कराने की सलाह दी उसके बाद मैग्नस के डॉक्टर अग्रवाल ने परिजनों को फिर से अपने पास बुलाया और एम्स में अपॉइंटमेंट दिलाने के बहाने ओरिजनल फाइल उनके पास रख ली जो एक दिन बाद वापस लौटाई गई इस दौरान डॉक्टर अग्रवाल ने अपनी गलती छुपाने के लिए पुरानी डिस्चार्ज समरी निकाल कर नई डिस्चार्ज समरी बनाई और फाइल में रख दी, जिसमे R.O.P टेस्ट लिखा हुआ था। एक दिन बाद परिजन 6 माह के नवजात को लेकर एम्स गए जहां डॉक्टर्स ने उन्हें कहा कि अब इसकी आंखों की रोशनी लाने का कोई इलाज नहीं है, जन्म से 30 दिन में R.O.P टेस्ट हो जाता तो रोशनी लाने का इलाज संभव था पीड़ित ने बताया कि जब उन्हें पहली बार ओरिजनल डिस्चार्ज समरी दी थी उस वक्त उन्होंने सभी दस्तावेजो की फोटो कॉपी करवा कर अपने पास रख ली थी पहली वाली डिस्चार्ज समरी की फोटो कॉपी और बाद में बदली गई डिस्चार्ज समरी में अंतर साफ देखा जा सकता है। अब बच्चे का हैदराबाद के एक अस्पताल में इलाज चल रहा है जिसमे भी रोशनी लौटने की संभावनाएं ना के बराबर है पीड़ित का कहना है कि मैग्नस अस्पताल और डॉक्टर मनोज की लापरवाही के कारण ना सिर्फ एक मासूम ने अपनी आंखों की रोशनी खो दी है बल्कि इस इलाज में अब तक उनके 14 लाख से ज्यादा खर्च हो चुके है इस पूरे मामले पर पीड़ित परिवार एसपी के सामने भी पेश हुआ और डॉक्टर के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की है लेकिन एसपी ने डॉक्टर्स पर सीधा मुकदमा नही होने का हवाला देते हुए जांच कमेटी बनाकर जांच की बात कही है पीड़ित ने बताया कि जांच कमेटी बनाने की बात को भी दो महीने हो चुके है लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है


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